May 5, 2013

ऐतराज़



गीली घास पर नंगे पैर
,चलने की चुभन

बारिश की बूँदें पलकों पर
,गिरने की सिहरन 

अंधेरी ठंडी रात के
,मासूम से चाँद की जलन 

..हर बार.. हर शहर 
वैसी ही है ।



एक सुबह,
एक शाम,
एक रात ..
मुझसे ले जाती है।

और वापस नहीं करती
कुछ भी ।

मैं भी तो
न जाने क्यूँ
ऐतराज़ नही करती ।