Jul 31, 2015

फिर मत कहना ...



फिर मत कहना कुछ कर न सके


जब नर तन तुम्हे निरोग मिला, सत्संगति का भी योग लिखा
फिर भी  प्रभु कृपानुभव करके, यदि भवसागर तुम तर न सके।
फिर मत.…

तुम सत्य तत्व ज्ञानी होकर, तुम सद्-धर्मी ध्यानी होकर
यदि सरल निर्-अभिमानी होकर, कामना विमुक्त विचर न सके
फिर मत.…

जग में जो कुछ भी पाओगे, सब यही छोड़ कर जाओगे
पछताओगे यदि तुम अपना, पुण्यों से जीवन भर न सके
फिर मत.…

जो सुख सम्पत्ति में फूल रहे, जो वैभव मद में मूल रहे
उनसे फिर पाप डरेंगे क्यों, जो परमेश्वर से डर न सके
फिर मत.…

जब अन्त समय आ जायेगा, तब क्या तुमसे बन पायेगा
यदि समय शक्ति के रहते ही, आचार विचार सुधर न सके
फिर मत.…

होता तब तक न सफल जीवन, है भार रूप सब तन मन धन
यदि पथिक प्रेम पथ में चलकर, अपना या पर दुःख  हर न सके

फिर मत कहना कुछ कर न सके


--------  पं. राम नाथ द्विवेदी (Grandfather)

No comments:

Post a Comment