वो खिलौना हमारा
कितना प्यारा था ,
कितना प्यारा था ,
जिसे अपना-अपना जताने की छीना-झपटी में
कुछ खरोंचे आई थी;
और भीग कर वापस मिट्टी हो गया था।
बाँट तो लिया है हमने अपना-अपना हिस्सा
उस मिट्टी में भी
उम्मीद है शायद अपना कोई
खिलौना बना ले
पर पता है,
कहाँ आता है हमें
खिलौने बनाना।
ज़रूरत ही नहीं पड़ी इतने सालों में..
हाँ इतने साल भी तो हो गए है
खिलौने नहीं मिलेंगे अब हमें
बड़े हो गए है हम शायद...
स्कूल भी खुलने वाले है
और ज्यादा पढाई करनी होगी
अब से छुट्टियाँ भी नहीं मिलेंगी हमें
गर्मियों की :(
तुझसे मिलना
ReplyDeleteइक रवायत नहीं
किसी उम्र का
महकता सुरूर भी नहीं
बदली हवाओं में
थमा सा कोई नशा भी नहीं ।
तुझ से मिलना
जिन्दगी में मिले छालों को,
अपने ही हाथों से मरहम लगाना -सा
तुझ से मिलना
Deleteकभी खुद से मिलने सा
;)1
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