Dec 19, 2012

कांच



कांच के टुकड़े
बिखरे है चारों तरफ
इतने चमकदार.... लुभावने ।
सब में अपना अक्स  सा कुछ दिखता है

जब भी कोई टुकड़ा उठाती हूँ
चुभ जाते है कुछ हाथों में
कुछ पैरों में
छलक आती है चंद बूँदें
गाढ़ी .. लाल ।


अरसा एक गुज़रता है फिर
कसक जाने में
भूल जाती हूँ अपना चेहरा
दर्द भी ... निशां भी ।

और फिर दौड़ पड़ती हूँ
उन्ही कांच के टुकड़ों की तरफ

अपना नया अक्स देखने ।


Dec 8, 2012

सर्दियाँ




दिसंबर की सुबह 
दिल्ली में रिक्शे का सफ़र 
4 सड़कों का 5 मिनट का रास्ता 
और फिर 
जब कुछ सर्द हवाएं 
एक कान के पास से आकर 
बालों की किसी लट को उडाती हुई 
आँखों के गुनगुने नमकीन से पानी को 
ठंडा बना कर 
दुसरे कान के पास से गुज़रती है 
तो लगता है......





कितनी सर्दी है यार :(
ऑफिस bunk कर देते है !!!! :P


Nov 16, 2012

Shelley's me




Teach me half the gladness
        That thy brain must know,
    Such harmonious madness
        From my lips would flow
The world should listen then, as I am listening now!


Lucky to have a few sincere critics around :)  they never fail to tell (as and when they get aware of) me the truth, at least their perception of it .

Getting complaints of being melancholic!

Not sure who and what to blame. Looking around for an answer..


We look before and after,
        And pine for what is not:
    Our sincerest laughter
        With some pain is fraught;
Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.


Nov 4, 2012

Thank You All :)



10,000+ Blog Views !!!!

Some 2 years back when I found my space in blog world, I hadn't imagined in my wildest dream that people would actually come to my page and pay attention to my scribble(as it might look like to many out there) :)!
Today when I receive a comment on my posts or notice visitors' count growing , I feel contented that my writings must be making some sense to at least few of these visitors around the world( much to my surprise!!).

I feel privileged and deeply touched.


MANY THANKS & HAPPY BLOGGING :)
your comments are always welcome.

Nitya

Oct 23, 2012

दांव


आज-कल
कुछ ज्यादा नज़र आती है
मेरी गलतियाँ मुझको
सचेत;
आस पास मंडराती हुईं ..

हर वक़्त, हर बात पर मेरी
प्रतिक्रियाएं देखती हुई

मेरे हंसने का कारण
मेरी चुप की वजह,
मेरे चलने के रास्ते
मेरी थमने की जगह।

मेरे हर शब्द की परिभाषा
मेरी हर सोच का इतिहास,
मेरे हर एक कदम की चाल
मेरी हर इक नज़र का पास।

इतनी फिक्रमंद?
पहले तो कभी नहीं रहीं  ..

कुछ फैसला लिख रहीं  है शायद 
इस लम्बे खेल की हार-जीत का
काफी सबूत इकठ्ठे किये है 
जीतने की उम्मीद होगी उनको,

पर मेरा दांव* देखे बिना
ख़ुशी न मना लेना .. :)

हम दोनों का निर्देशक एक ही है
और पिक्चर अभी बाक़ी है। :)

the last lines are inspired by the filmy air around, Yash Chopra Ji,  I too had a few favorites among your type of flicks :) RIP!

* move in a game, stakes

Oct 19, 2012

parallel lines :-/

the fate of parallel lines

they go along all the way
synced, consistent, together
only to meet never

they can be close
but must follow different tracks
to qualify as themselves

they can fade away
but cant think of merging
lest they break the rule!


and here I see coming... SO WHAT ???!!! :P

... sometimes you just get these out of the blue thoughts when you are on an off from office, lie on bed, down with cold and not able to sleep due to this irritating running nose !!! :(


Oct 5, 2012

लोग



कोई सूरत भी मुझे पूरी नज़र आती नहीं
आँख के शीशे मेरे चटके हुए है


टुकड़ों टुकड़ों में सभी लोग मिले है मुझको।


                      - गुलज़ार


Aug 31, 2012

भरोसा


ठहरे हुए पानी में
कभी डाल देते हो पत्थर
लहरों से खेलने ..
या जूझने को।


रास्ते समझ आते  ही
जोड़ देते हो चंद और राहें
मंजिल से भटकने  को ।


कभी छोड़ देते हो
बांध कर आँखों पर पट्टी;
छुपा-छुपायी के खेल सा

फिर कहते हो
पहचानो लोगों को !


तुम्हारा भरोसा भी
मुझ पर इस क़दर है
जो बिखरने भी नहीं देता
और संभलने भी नहीं ।


Aug 20, 2012

सपना



एक सपना है
सालों से देख रही हूँ

बेईमानियों के साथ
खेल, खेल रही हूँ
जीत नही पाती
हारती ही हूँ हर बार;
पर एक नशा है
हर बार नयी
चाल चलने का :)

हारे हुए कई इनाम
जमा हो गए है
बेच दूं क्या?
शायद वो सपना खरीद पाऊँ !



Aug 14, 2012

Mirror

mirror, mirror on the wall


do you belong to some actress
oblivious of her heart,
ever wanting to be admired
for the makeup man's art.

afraid of anonymity
ignoring the voice within,
she cared for masks
more than her own skin.

couldn't she ever
let herself stay,
just coz she was known
some other way.


mirror, mirror on the wall

have you turned friendly
or still speak the truth?
why don't you tell her
a lot more she is worth!

all she'll get
is comedown and pity,
by drifting away
from
her wonderful originality!


Jul 29, 2012

Revisit


the thought of tracing back
those few steps of mine
is unwanted n scary
n tough to determine!

why was I trapped
to threads unseen
no efforts could resolve,
how-so-ever keen.

would you only watch
or try to answer
the queries unquestioned
that I still ponder;

or shall I assume:

not everything is to be told
to the world..out n bold,

few are meant to realize n cure
to make d recovery fast n sure...



Jul 19, 2012

सीख


इतनी कहाँ निकली है ज़िन्दगी
जितनी जीनी है अभी,
चलो अच्छा हुआ
कुछ सीख ही लिया।

A chapter !


Ah.. was away for quite some time.. have been very busy and bit unwell. While the busy routine continues, trying to snatch some time for myself :).

With reference to my last post, I was glad to see that people kept anticipating!
I even got an assignment to frame my thoughts on 'stranger'. As I keep saying, writing just happens to me with mood swings and incidents happening around me; I dont write on purpose or on demand. I cant. It feels like forcing my thoughts in a particular direction.
However, I have an old piece of work, written some 4-5 yrs back. It might not be relevant to the assignment still thought of sharing. Do comment :) ....

मैंने खुद को असहज पाया

ये पहली बार हुआ था
जब खुद को निर्बल पाया
हाँ पहली बार ही जीवन में
एक अनचाहा अध्याय जुड़ा;
पर क्यों?
क्या इतनी कमी सही थी
जो सबको अपनाना चाहा?
या इतनी असहाय हुई थी
जो मिथ्या अवलंबन चाहा?

या फिर मैं बदल गयी थी,
नरमी से पिघल गयी थी
अनजाने संबल की चाह में
खुद को भूल गयी थी?

हाँ शायद खुद को भूल रही थी ..

अपनी क्षमता अपनी दृढ़ता
अपना विवेक और अपना लक्ष्य
अपनी राहें, आकांक्षायें
और भूल रही थी अपना सच।

कुछ अनजाने से साये जब
अनजान डगर पर मिले मुझे
एक पल के लिए सुनसान अंधेरों में
जुगनू से लगे मुझे;
मैं मृग सी उस मरीचिका की
चाहत में उनके साथ चली
किन्तु चाहकर भी
मृग की नियति न बदल सकी।।

.......

अब होश दिलाया गया है
लौटना है वापस
और रास्ता भी बताया गया है
पहुँचना ही है वहाँ,
अँधेरा ढलने और साये मिलने से पहले।



Jul 5, 2012

the topic


A few days back this friend of mine pinged me and while conversing he casually asked.. aur poems voems nahi likh rahi aaj kal? Since I dont really intimate people whenever I post something here, I understood that though being aware of its existence, he has not been checking this blog of late. Well, fine with me.. I simply affirmed and responded with the link.
A pause, a few formal niceties and the important part to come was his suggestion to try hands on Non-Poetry stuff. May be he didnt like the poems or thought I could do better with stories( Cant say what made him suggest this..believe me I have never been a story-teller :P). I always thought I lack that skill and patience!

The idea anyway did sound interesting ..will not say challenging as I dont have to prove anything anywhere! All this is totally about that thing called creative gratification :).

Waiting for the topic to come across..

Jun 26, 2012

जवाब

तुम्हारे ख़त ने परेशां कर रखा है
इतने सवाल किये है तुमने
किस किस का क्या क्या जवाब दूं


हिमालय की उंचाई से लेकर
प्रशांत की गहराई तक
हर जगह की विशेषता से लेकर
हर मौसम की भिन्नता तक 
 
नहीं जानती मैं जवाब इनके
नहीं पता मुझे ये इतिहास है
या भूगोल
या कोई और ही विषय

तुम्हे आसां लगे होंगे
मुझे नहीं लगते अब 
हाँ याद रखती थी मैं भी कभी  
तुम्हारे लिए ही सही 
तब क्यों नहीं पूछा
तुमने ये सब

चंद अखबारों की कई खबरें
तलाशती हूँ
और पुरानी किताबों के
पन्ने पलटती हूँ
पर नहीं मिलता कुछ भी
उम्मीद भी नहीं

गुम हो गए है मुझसे ही कहीं
इस लम्बे सफ़र में,

रास्तों ने कुछ क़दमों का किराया माँगा था
शायद उसी ने रख लिए
तुम्हारे हर एक सवाल के
मेरे सारे जवाब !

Jun 9, 2012

खिलौना

वो खिलौना हमारा
कितना प्यारा था ,
जिसे अपना-अपना जताने की छीना-झपटी में
कुछ खरोंचे आई थी;
फिर बारिश भी हुई थी ज़ोरों से
और भीग कर वापस मिट्टी हो गया था।
बाँट तो लिया है हमने अपना-अपना हिस्सा
उस मिट्टी में भी
उम्मीद है शायद अपना कोई 
खिलौना बना ले
पर पता है,
कहाँ आता है हमें
खिलौने बनाना।
ज़रूरत ही नहीं पड़ी इतने सालों में..

हाँ इतने साल भी तो हो गए है
खिलौने नहीं मिलेंगे अब हमें
बड़े हो गए है हम शायद...

स्कूल भी  खुलने वाले है
और ज्यादा पढाई करनी होगी
अब से छुट्टियाँ भी नहीं मिलेंगी हमें
गर्मियों की :(

Apr 30, 2012

Diary


आज फिर....
cupboard साफ़ करते हुए
तुम्हारी gift की हुई diary मिली,
उन कोरे पन्नों को देख कर लगा
चलो इस बार इन पर लिखा जाये 

फिर पलटते -पलटते
उन पन्नों पर ना-लिखी कहानियां
याद आने लगीं सारी
एक-एक  कर ..

आज फिर....
उन यादों के लालच में 
रख दी है वो diary संभाल कर।
नहीं किया अभी तक,
एक भी कोरे पन्ने को 
Overwrite!


Apr 28, 2012

Stuck


I so want to format atleast one of those plenty of threads running through my mind these days!
No luck though :(
Need to stop a few or segregate 'em .. help needed from within  :)


Mar 27, 2012

परछाइयाँ

जिन दरवाजों पर सुबह-शाम दस्तक देते है लोग
उस घर में तो हम रहते ही नहीं
हाँ हमारी परछाई रहती थी कभी

और परछाइयों का क्या
आती-जाती रहतीं  हैं...

काश कोई हमारे घर तक पहुँचता
तो हमसे मुलाकात हो पाती ।



Mar 19, 2012

Irony

I wandered a whole long day
and a sleepless night,
for stars to be soother
and sun to be bright..

respectively  !!




Feb 4, 2012

कहानियां

कहानियों के गुच्छे
कुछ सुलझाने है तुम्हारे साथ
गर मिले कभी हम
फुर्सत से..

बताउंगी तुम्हे
क्यों वो कहानी
इतनी लम्बी थी
फिर.. एक छोटी सी;
क्यों उस वाली में
इतना रोयी थी
क्यों किसी और में
ज़रा खुश थी।
क्यों एक बार
शब्द नहीं दिए थे किरदारों को
क्यों अगली में फिर
जी भर कर बातें की थी
हाँ , एक कुछ फ़िल्मी थी
और एक कड़वा सच सी ...

बुरा लगेगा तुम्हे,
जानती हूँ
तुम्हारा ज़िक्र जो नहीं था
किसी कहानी में,
शायद तुम समझ पाओगे
तुम्हारे ही तो रूप लिए थे
सब  नायकों ने;

नायिका भी तो मैं ही थी
हर बार।

कुछ इसी तरह
ज़िन्दगी के तमाम पहलू
गुज़ारे है तुम्हारे साथ
तुम भी तो... थे ही नही,
मैं भी क्या करती?

Jan 21, 2012

मधुशाला

जितनी दिल की गहराई हो
उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो
उतनी मादक है हाला,

जितनी उर की भावुकता हो
उतना सुन्दर साक़ी है
जितना ही हो रसिक, उसे है
उतनी रसमय मधुशाला

मेरी हाला में सबने
पायी अपनी-अपनी हाला
मेरे प्याले ने सबने
पाया अपना-अपना प्याला,

मेरे साक़ी में सबने अपना
प्यारा साक़ी देखा,
जिसकी जैसी रूचि थी उसने,
वैसी देखी मधुशाला

       - बच्चन


Jan 13, 2012

बारिश

उस रोज़ बादल घिरे थे
जब हमें मिलना था

शिकायतें करनी थी
किस्से सुनाने थे
... बातें बाक़ी थी

इस बार के लम्बे इंतज़ार को
ख़त्म होना था
तुमसे मिल कर
बड़ी देर तक
बस तुम्हे देखना था

बिजली कड़क रही थी
फ़ोन पर नज़र जाती थी बार बार
अब तक कॉल नहीं किया तुमने
बिज़ी होगे शायद

कोहरा छा रहा था
दिन भी ख़त्म हो रहा था
कॉल नहीं आई;

तुम ही नहीं पहुचे शायद
जहां हमें मिलना था


उस रोज़..
बारिश भी ज़ोरों से हुई थी


Jan 4, 2012

Another start


When things don't go my way
they dont have to
but I just wish they do

everytime I have to take a turn
I dont always like,
the effort of finding new path
and knowing the people by side!
what if they don't turn good
and wouldn't match the stride.
would they ever understand me
or should I even try?

Oh, I even see another start
to carry things the right way,
... a better play of my part!!

Jan 2, 2012

Unknown



Will you solve a mystery for me

why things have to change
Why is life so complicated
Why can't things stay the same

I understand that people grow
And often grow apart
You have a special something
I just can't figure out!


.. dedicated to someone(unknown) who wrote it for me!

Jan 1, 2012

2012 !!

Dear visitors (accidental & regular) , admirers (open & secret :P) and fellow bloggers,


May 2012 bring you all what you have been aspiring for.. Have a wonderful year ahead ! :)