Feb 4, 2012

कहानियां

कहानियों के गुच्छे
कुछ सुलझाने है तुम्हारे साथ
गर मिले कभी हम
फुर्सत से..

बताउंगी तुम्हे
क्यों वो कहानी
इतनी लम्बी थी
फिर.. एक छोटी सी;
क्यों उस वाली में
इतना रोयी थी
क्यों किसी और में
ज़रा खुश थी।
क्यों एक बार
शब्द नहीं दिए थे किरदारों को
क्यों अगली में फिर
जी भर कर बातें की थी
हाँ , एक कुछ फ़िल्मी थी
और एक कड़वा सच सी ...

बुरा लगेगा तुम्हे,
जानती हूँ
तुम्हारा ज़िक्र जो नहीं था
किसी कहानी में,
शायद तुम समझ पाओगे
तुम्हारे ही तो रूप लिए थे
सब  नायकों ने;

नायिका भी तो मैं ही थी
हर बार।

कुछ इसी तरह
ज़िन्दगी के तमाम पहलू
गुज़ारे है तुम्हारे साथ
तुम भी तो... थे ही नही,
मैं भी क्या करती?

9 comments:

  1. हम तो इंतज़ार में बैठे रहे यूँ ही ,दिन भर
    वो आए तो करीब मेरे ,पर बिन देखे कि
    मेरी आँखों में इंतज़ार के आँसू भी हैं
    उसने ना आने के सौ बहाने बताएँ,
    पर ये नहीं पूछा कि ,तुम कैसे हो
    मेरे ना आने पर ...|

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    1. उनके देखने से जो आ जाती है मुंह पर रौनक
      वो समझते है कि बीमार का हाल अच्छा है।

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    2. very gud ji !!!

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