Jan 6, 2016

विचरण



दिल की सतहों में रहते हो
मन की परतों में बसते हो
तुम दर्द से गहरे उतरे हो
नस नस में जैसे बहते हो

आँखों में हरदम मंज़र से
टापू के चहुँओर समंदर से
हर बात में तुम्ही निकलते हो
नस नस में जैसे बहते हो। 

यादें सारी उजली मैली 
रिश्तों की वो भाषा शैली
तुम अब भी मुझसे कहते हो
नस नस में जैसे बहते हो। 

स्पर्श तुम्हारा है मन पर
संघर्ष तुम्हारा जीवन पर
साँसों में दिए से जलते हो
नस नस में जैसे बहते हो। 


हर धूप छाँव के मौकों में 
हर वक्त हवा के झोंकों में 
आँगन में रोज़ विचरते हो

नस नस में जैसे बहते हो। 



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