इस शहर की हवा का शोर
जो सांसों में घुल गया था
आज फिर अलग-अलग सुनाई दे रहा है
पहले चंद दिनों सी झिझक है
अजनबीपन है।
यहां survive ना कर पाने का
वो दर्द फिर महसूस हो रहा है
Streets & Avenues
फिर से designer लग रहे है।
ख़ुद में और बाकियों में
फिर से अन्तर दिख रहा है।
और मेरी इस किताब का
Prologue & Epilogue
discuss कर रहे हैं। :-)
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