कल की रात
तुम्हारी रात
विष की और
विरह की रात।
तुमसे दूर तुम्ही में सिमटी
सांस और धड़कन की रात
तुम्हे छोड़कर तुमको मांगा
दर्द भरी उलझन की रात।
गलत और सही की रात
सुनी और कही की रात।
काली ज़िद्दी डरावनी
झर-झर झरती-बहती रात।
कितना क्या- क्या गुज़रा पर,
पर्दे सी सूनी फिल्मी रात
वादों की और दावों की
फिर बिन शब्दों की खाली रात।
कल की रात
सदी सी रात।