Showing posts with label विष. Show all posts
Showing posts with label विष. Show all posts

May 13, 2019

सागर

कुछ बूंदें,
यूँ कह कर के
मत मांगो;

मैं देता हूँ
लो तुम पूरा सागर ले लो |

मैं विष पीकर जीता आया हूँ
......फिर जी लूँगा 
ले लो,
तुम अमृत की गागर ले लो
कुछ बूंदें क्यूं
सागर ले लो | 

घोर अमां आई है ?
आई रहने दो
ओह, कालिमा छाई है ?
छाई रहने दो
चांद नहीं है आसमान में ?
अहे, चांदनी से क्या होगा ....

अहे, चांदनी से क्या होगा ,
मैं पी लेता हूँ अंधकार भी
लो, तुम प्रखर प्रभाकर ले लो
कुछ बूंदें क्यूं
सागर ले लो;

कुछ बूंदें क्यूं
सागर ले लो | 




~ SD

Dec 3, 2014

एक रात


कल की रात
तुम्हारी रात
विष की और
विरह की रात।

तुमसे दूर तुम्ही में सिमटी
सांस और धड़कन की रात
तुम्हे छोड़कर तुमको मांगा
दर्द भरी उलझन की रात।

गलत और सही की रात
सुनी और कही की रात।

काली ज़िद्दी डरावनी
झर-झर झरती-बहती रात।

कितना क्या- क्या गुज़रा पर,
पर्दे सी सूनी फिल्मी रात
वादों की और दावों की
फिर बिन शब्दों की खाली रात।


कल की रात
सदी सी रात।