तुम्हारे ख़त ने परेशां कर रखा है
इतने सवाल किये है तुमने
किस किस का क्या क्या जवाब दूं
नहीं पता मुझे ये इतिहास है
या भूगोल
या कोई और ही विषय
तुम्हे आसां लगे होंगे
चंद अखबारों की कई खबरें
इतने सवाल किये है तुमने
किस किस का क्या क्या जवाब दूं
हिमालय की उंचाई से लेकर
प्रशांत की गहराई तक
हर जगह की विशेषता से लेकर
हर जगह की विशेषता से लेकर
हर मौसम की भिन्नता तक
नहीं जानती मैं जवाब इनकेनहीं पता मुझे ये इतिहास है
या भूगोल
या कोई और ही विषय
तुम्हे आसां लगे होंगे
मुझे नहीं लगते अब
हाँ याद रखती थी मैं भी कभी
तुम्हारे लिए ही सही
तब क्यों नहीं पूछा
तुमने ये सब
तलाशती हूँ
और पुरानी किताबों के
पन्ने पलटती हूँ
पर नहीं मिलता कुछ भी
उम्मीद भी नहीं
गुम हो गए है मुझसे ही कहीं
इस लम्बे सफ़र में,
रास्तों ने कुछ क़दमों का किराया माँगा था
शायद उसी ने रख लिए
तुम्हारे हर एक सवाल के
मेरे सारे जवाब !