गीली घास पर नंगे पैर
,चलने की चुभन
बारिश की बूँदें पलकों पर
,गिरने की सिहरन
अंधेरी ठंडी रात के
,मासूम से चाँद की जलन
..हर बार.. हर शहर
वैसी ही है ।
एक सुबह,
एक शाम,
एक रात ..
मुझसे ले जाती है।
और वापस नहीं करती
कुछ भी ।
मैं भी तो
न जाने क्यूँ
ऐतराज़ नही करती ।