ठहरे हुए पानी में
कभी डाल देते हो पत्थर
लहरों से खेलने ..
या जूझने को।
रास्ते समझ आते ही
जोड़ देते हो चंद और राहें
मंजिल से भटकने को ।
कभी छोड़ देते हो
बांध कर आँखों पर पट्टी;
छुपा-छुपायी के खेल सा
फिर कहते हो
पहचानो लोगों को !
तुम्हारा भरोसा भी
मुझ पर इस क़दर है
जो बिखरने भी नहीं देता
और संभलने भी नहीं ।