खुद में उलझी, खुद में सिमटी
खुद में खोयी, जागी सोयीएक अपना ही संसार लिए
और कुछ अपनों का प्यार लिए
अनजान डगर अनजान सफ़र
अनियंत्रित डग चल पड़े किधर?
असमंजस और अंधेरों में
जलती बुझती सी मशाल लिए
कुछ उलझन और सवाल लिए
और अनचाहे से ख्याल लिए
बस क्षण भर रुक कर चलने को
मैं ढूढ़ रही हूँ छाँव एक|
कुछ समय और एकांत देश
स्मरणीय से कुछ पल विशेष
इस पथ पर घटित घटनाएँ कुछ
और वो सब कुछ जो बचा शेष
लेकर फिर आगे बढना है
क्या खोया है बस यहीं भूल
जो पाया उसमे रमना है;
उसको परिभाषित करना है ||